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कपास की खेती की सम्पूर्ण जानकारी

कपास की खेती की सम्पूर्ण जानकारी

कपास की खेती को नगदी फसल के रूप में जाना जाता है. एक प्रश्न ये भी उठता है कि कपास की खेती कहाँ होती है? इसको भारत के लगभग सभी राज्यों में उगाया जाता है. 

मुख्य रूप से इसे गुजरात में सबसे ज्यादा उगाया जाता है. वैसे तो इसको उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटका आदि राज्यों में भी उगाया जाता है. कपास को सफेद सोना भी बोला जाता है. 

इसको सफेद सोना इस लिए बोला जाता है क्योंकि इसके उत्पादन से किसानों को अच्छी आय होती है तथा इससे उनके जीवन स्तर में सुधार आता है. 

आजकल कपास की भी कई उन्नत और नई प्रजातियां आ गई है इसलिए इसे किसी भी तरह की मिटटी में उगाया जा सकता है. लम्बे रेशे वाली कपास को सर्वोत्तम माना जाता है. इसकी पैदावार भी ज्यादा होती है.

कपास की खेती के लिए उपयुक्त मिटटी:

कपास की खेती के लिए मिटटी या कपास की खेती के लिए सबसे अच्छी मिटटी कौन सी होती है. इस पर हम चर्चा करेंगें. वैसे तो कपास के लिए दोमट, काली और बलुई मिटटी सर्वोत्तम होती है. 

इस मिटटी में इसकी फसल ज्यादा उपजाऊ होती है लेकिन आजकल इतनी प्रजातियां आ चुकी हैं की अपने खेत की मिटटी के हिसाब से आप प्रजाति का चुनाव कर सकते हैं और कपास की अच्छी पैदावार ले सकते हैं.

कपास की खेती कैसे होती है:

कपास की खेती के लिए ज्यादा पानी की आवश्यकता नहीं होती है कम पानी में भी इसकी अच्छी खेती की जा सकती है. इसकी फूल आने के समय बारिश से फसल ख़राब हो जाती है.

ध्यान रखें की बुवाई में इतना समय हो की फूल आने के समय बारिश न हो नहीं तो इसका फूल ख़राब हो जाता है. इसके खेत को तैयार करने के बाद बोने से पहले एक रात का समय दिया जाना चाहिए और इसकी बुवाई शाम के समय में करनी चाहिए. 

कपास की खेती को तेज धूप की जरूरत होती है. इसके फूल जब अच्छे से खिल जाए तभी इनको तोडा जाए अन्यथा की स्थिति में इसके कच्चे फूल पूरे पके फूलों को भी ख़राब कर सकते हैं.

खेत की तैयारी:

खेत की तैयारी करते समय हमें पहली जोत गहरी लगानी चाहिए जिससे की नीचे की मिटटी ऊपर आ जाए और खेत की उपजाऊ मिटटी ऊपर आ जाए. इससे आपकी फसल को पोषक तत्व मिलेंगें. 

इसके बाद इसमें गोबर की सड़ी हुई खाद लगभग 40 से 60 क्विंटल पर एकड़ के हिसाब से मिलाना चाहिए. इसके बाद इसकी पलेवा करके जब मिटटी भुरभुरी होने लायक हो जाए तो कल्टीवेटर से जुताई कर के उस पर पाटा लगा देना चाहिए. 

जिससे की खेत समतल हो जाये. उसके बाद एक रात का समय देकर अगले दिन शाम को खेत की बुवाई कर देनी चाहिए.

कपास की खेती का इतिहास / कपास कितने प्रकार के होते हैं:

कपास सामान्यतः 3 प्रकार के होते हैं.

  1. लम्बे रेशे वाली कपास.
  2. मध्य रेशे वाली कपास.
  3. छटे रेशे वाली कपास.
1 - लम्बे रेशे वाली कपास: लम्बे रेशे वाली कपास को सबसे उत्तम कपास माना जाता है. इसके रेशों की लम्बाई लगभग 5 सेंटीमीटर से ज्यादा होती है. इस श्रेणी की कपास का इस्तेमाल उच्च कोटि या महगे कपड़ों को बनाने में किया जाता है. भारत में इस श्रेणी की किस्मों को दूसरे नंबर पर उगाया जाता है. कुल उत्पादन में इसका 40% हिस्सा होता है. इसकी खेती मुख्य रूप से गुजरात के तटीय हिस्सों में की जाती है. इस कारण इसे समुद्र द्वीपीय कपास भी कहा जाता है. 

2 - मध्य रेशे वाली कपास: इस श्रेणी के कपास के रेशों की लम्बाई 3.5 से 5 सेंटीमीटर तक पाई जाती है. इसे मिश्रित श्रेणी की कपास भी कहा जाता है. इस श्रेणी की किस्मों को भारत के लगभग सभी राज्यों में उगाया जाता है. कुल उत्पादन में इसका सबसे ज्यादा 45% हिस्सा होता है. 

3 - छोटे रेशे वाली कपास: इस श्रेणी की कपास के रेशों की लम्बाई 3.5 सेंटीमीटर से कम होती है. कपास की इन किस्मों को उत्तर भारत में ज्यादा उगाया जाता है. जिनमें असम, हरियाणा, राजस्थान, त्रिपुरा, मणिपुर, आन्ध्र प्रदेश, पंजाब, उत्तर प्रदेश और मेघालय शामिल हैं. उत्पादन की दृष्टि से इस श्रेणी की कपास का उत्पादन कुल उत्पादन का 15% होता है.

कपास के बीज को क्या कहते हैं:

कपास की खेती

सामान्यतः कपास के बीज को बिनोला कहा जाता है. इसके बीज को रुई से अलग करके दुधारू पशुओं को खिलाया जाता है जिससे की उनका दूध गाढ़ा और ताकतवर होता है. 

बिनोला खाने वाले पशु के दूध में घी की मात्रा बढ़ जाती है. कपास को ओषधि के रूप में भी प्रयोग में लाया जाता है. कपास स्वभाव वश प्रकृति से मधुर, थोड़ी गर्म तासीर की होती है। 

इसके अलावा यह पित्त को बढ़ाने वाली, वातकफ दूर करने वाली, रुचिकारक; प्यास, जलन, थकान, बेहोशी, कान में दर्द, कान से पीब निकलना, व्रण या घाव, कटने-छिलने जैसे शारीरिक समस्याओं के लिए औषधि के रुप में काम करती है।

इसके बीज  (बिनोला ) मधुर, गर्म, स्निग्ध, वात दूर करने वाले,स्तन का आकार बढ़ाने वाले तथा वात कफ को बढ़ाने वाले होते हैं। कपास का अर्क या काढ़ा सिर और कान दर्द को कम करने के साथ-साथ शंखक रोग नाशक होता है। 

कपास के फल कड़वे, मधुर, गर्म, रुचिकारक तथा वातकफ कम करने वाले होते हैं। बीज रोपाई करने का तरीका: बीज रोपाई का तरीका आप पवेर ( बीज छिड़कना ) कर भी बोया जा सकता है. 

जो किसान भाई कई सालों से खेती करते आ रहे हैं तो वो अपने आप ही ऐसे पवेर करते हैं की हर बीज एक निश्चित दूरी पर गिरता है. 

अगर आपको पवेर करना नहीं आता है तो आप ट्रेक्टर द्वारा मशीन से भी इसकी बुबाई कर सकते हैं. इसमें पौधे से पौधे की दूरी करीब 50 सेंटी मीटर रखनी चाहिए जिससे की पौधे को फूलने का पर्याप्त जगह मिलें.

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फसल की तुड़ाई:

कपास की फसल की तुड़ाई

जब इसका फूल पूरी तरह से खिल जाये और थोड़ा बहार की तरफ निकलने लगे तो समझो की इसको अब अलग कर लेना चाहिए. ध्यान रहे कि कच्चे या अधपके फूल को नहीं निकलना चाहिए. 

ये दूसरे फूलों को भी पीलापन दे देता है. इसको तोड़ते समय ध्यान रखने योग्य बातें है कि इसकी सुखी हुई पत्तियां कपास में नहीं मिलनी चाहिए. 

इसको तोड़ कर धूप में पूरी तरह से सूखा लेना चाहिए. इससे इसको रूई में पीलापन नहीं आता है. इसकी तुड़ाई ओस सूखने के बाद ही करनी चाहिए.

कपास की पैदावार से आमदनी:

किसानों को कपास की खेती से अच्छी आमदनी होती है. इसकी अलग-अलग किस्मों से अलग-अलग पैदावार मिलती हैं. जहां देसी किस्मों की खेती होती है, 

वहां लगभग 20 से 25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर और जहां अमेरिकन संकर किस्मों की खेती होती है, वहां लगभग 30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक पैदावार हो सकती है. 

बाजार में इसका भाव 5 हज़ार प्रति क्विंटल के हिसाब से होता है, इसलिए किसान एक हेक्टेयर से एक बार में लगभग 3 लाख से ज्यादा पैसा कमा कर सकते हैं.

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कपास में लगने वाले रोग:

सामान्यतः कपास में रोग काम ही आता है. लेकिन कभी कभी मौसम ख़राब या ज्यादा बारिश भी कपास में रोगों को बढाती है. 

  1. हरा मच्छर: ये पौधों की पत्तियों पर निचे की तरफ चिपक के उनका रास चूसता रहता है तथा पत्ती को सुखा देता है. 
  2. सफेद मक्खी: सफेद मक्खी भी इसी तरह निचे वाली सतह पर चिपक कर पत्ती का रास चूसती रहती है. 
  3. चितकबरी सुंडी: इसका प्रकोप जब पेड़ पर फूल और टिंडे बनने के समय दिखाई देता है. इसके प्रकोप से टिंडे के अंदर ही फूल नष्ट हो जाता है. 
  4. तेला: फसल पर तेला रोग भी कीटों की वजह से लगता हैं. इसके कीट का रंग काला होता है तथा ये तेल जैसा पदार्थ छोड़ता रहता है इस लिए इसको तेल भी बोला जाता है. जो आकर में छोटा दिखाई देता हैं. यह कीट नई आने वाली पत्तियों को ज्यादा नुकसान पहुंचता है. 
  5. तम्बाकू लट: पौधे को ये कीट सबसे ज्यादा नुक्सान पहुँचाता है. यह कीट एक लम्बे कीड़े के रूप में होता है. जो पत्तियों को खाकर उन्हें जालीनुमा बना देता हैं. इससे पत्तियां सूख जाती हैं तथा धीरे धीरे पेड़ ही नष्ट हो जाता है. 
  6. झुलसा रोग: पौधों पर लगने वाला झुलसा रोग सबसे खरनाक रोग हैं. इसके लगने पर टिंडों पर काले रंग के चित्ते बनने लगते हैं. और टिंडे समय से पहले ही खिलने लग जाते हैं. जिनकी गुणबत्ता अच्छी नहीं होती तथा ये दूसरे फूलों को भी ख़राब कर देते हैं. 
  7. पौध अंगमारी रोग: इस रोग के लगने पर कपास के टिंडों के पास वाले पत्तों पर लाल कलर दिखाई देने लगता है. इसके लगने पर खेत में नमी के होने पर भी पौधा मुरझाने लगता हैं. 
  8. अल्टरनेरिया पत्ती धब्बा रोग: अल्टरनेरिया पत्ती धब्बा रोग बीज जनित रोग होता है. इसके लगने पर शुरुआत में पौधों की पत्तियों पर भूरें रंग के छोटे धब्बे बनने लगते हैं 
  9. जड़ गलन रोग: जड़ गलन की समस्या पौधों में ज्यादा पानी की वजह से होता है. इसकी रोकथाम का सबसे अच्छा उपचार खेत में पानी जमा ना होने दें. जड़ गलन का रोग मुख्य रूप से बारिश के मौसम में देखने को मिलता है.

काली मिर्च की खेती, बेहद कम लागत में हो जाएंगे लखपति, जानिए कैसे करेंगे खेती

काली मिर्च की खेती, बेहद कम लागत में हो जाएंगे लखपति, जानिए कैसे करेंगे खेती

कम लागत में ज्यादा मुनाफा पाना भला किसे अच्छा नहीं लगता. अगर आप भी उन्हीं लोगों में से एक हैं, जो बेहद कम लागत में कोई ऐसा बिजनेस ढूंढ रहे हैं, जो ज्यादा मुनाफा दे तो हम आपको एक ऐसी खेती के बारे में बता रहे हैं, जिसके जरिये आप लाखों की कमाई करके मालामाल हो सकते हैं. बाजार में इन दिनों काली मिर्च की काफी ज्यादा डिमांड है. जिसकी वजह से किसानों का काफी ज्यादा फायदा मिल रहा है. गर्म मसाले में आमतौर पर काली मिर्च का इस्तेमाल किया जाता है. एक अच्छी खुशबू और बेमिसाल स्वाद के लिए इसकी मांग पूरी दुनिया में रहती है. अगर काली मिर्च की खेती व्यापारिक तरीके से की जाए तो इससे अच्छा खासा मुनाफा कमाया जा सकता है. देश में काली मिर्च का उत्पाद अकेले केरल से किया जा रहा है. जो की 90 से 95 फीसद है. इसका पौधा बेल या फिर लताओं के रूप में बढ़ता है. गर्मी का समय यानि कि, मार्च से अप्रैल और बारिश का समय यानि जून से जुलाई के महीनों में काली मिर्च के बीजों की रोपाई का सबसे अच्छा समय होता है. इसकी खेती करके आप भी लाखों कमा सकते हैं. वो कैसे, चलिए जान लेते हैं.

जानिए भारत के कौन से राज्यों में होती है काली मिर्च की खेती

काली मिर्च की खेती भारत में बड़े पैमाने में की जाती है. लेकिन काली मिर्च की खेती सबसे ज्यादा कर्नाटक, तमिलनाडु, कोंकण क्षेत्र के साथ साथ पांडिचेरी और अंडमान निकोबर द्वीप समूह में की जाती है.

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कैसे करें काली मिर्च की खेती?

रसोई में कल मिर्च का इस्तेमल मसालों के तौर पर किया जाता है. जिस वजह से बाजार में इसकी डिमांड काफी ज्यादा रहती है. इसकी कहती के लिए मौसम से लेकर मिट्टी और रोपाई ये सभी चीजें मायने रखती हैं. इसलिए इसकी खेती से पहले कुछ खास बातों का ध्यान जरुर रखना चाहिए.
  • खेती के लिए उचित जलवायु

काली मिर्च की खेती करना चाहते हैं, तो मौसम का खास ख्याल रखें. क्योंकि ज्यादा ठंडे मौसम में इसकी खेती नहीं की जाती. इसकी खेती के लिए अच्छी बारिश की जरूरत होती है. साथ ही 10 से 40 डिग्री सेल्सियस का तापमान इसकी खेती के लिए बेहतर होता है. हालांकि आप चाहें तो उचित व्यवस्था करके इसकी खेती पूरे साल कर सकते हैं.
  • खेती के लिए उचित मिट्टी

काली मिर्च की खेती के लिए उचित मिट्टी का होना बेहद जरूरी है. इसके लिए लाल लेटेराईट मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है. मिट्टी का पीएच मान 4.6 से 6 के बीच में होना अच्छा माना जाता है, इसकी मिट्टी की सबसे बड़ी खासियत यही होती है, कि, इसे ज्यादा पानी की जरूरत नहीं होती.
  • इस तरह करें काली मिर्च के पौधे की रोपाई

काली मिर्च की खेती के लिए आप बीजों और पौधों दोनों में से किसी का भी इस्तेमाल कर सकते है. उनकी रोपाई के वक्त उनके बीच की दूरी का ध्यान रखें. 1 हजार 666 पौधे एक हेक्टर की जमीन पर लगाना सही हो सकता है.
  • जानिए पौधे लगाने का सही तरीका

काली मिर्च के पौधौं को सहारे की जरूरत होती है. व्यवसायिक खेती के लिए उचित दूरी पर खेतों में खंबे गाड़ें. जिसके बाद तीन से चार मीटर की दूरी ओर गड्ढों को खोद लें. जिनमें काली मिर्च के पौधों की रोपाई की जाएगी.काली मिर्च के पौधों की ग्रोथ बेल की तरह होती है.
  • जानिए कैसे करें सिंचाई

गर्मियों के मौसम में काली मिर्च की फसल में सिंचाई की जरूरत दो दो दिनों के अंतर में करनी चाहिए. वहीं मौसम अगर सर्दियों का है तो ऐसे में एक हफ्ते के अंतराल में सिंचाई करें. आप इस बात का ध्यान रखें की काली मिर्च की फसल में पर्याप्त नमी बनी रहे.

काली मिर्च की क्या हैं उन्नत किस्में?

  • पन्नियूर एक की वैरायटी की पैदावार 1240 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के हिसाब से होती है.
  • पन्नियूर दो की वैरायटी की पैदावार 2600 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के हिसाब से होती है.
  • पन्नियूर तीन की वैरायटी की पैदावास 1950 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के हिसाब से होती है.
  • पन्नियूर चार की वैरायटी की पैदावार 1270 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के हिसाब से होती है.
  • पन्नियूर पांच की वैरायटी की पैदावार 1100 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के हिसाब से होती है.
  • सुभाकारा की वैरायटी की पैदावार 2350 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के हिसाब से होती है.
  • श्रीकारा की वैरायटी की पैदावार 2680 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के हिसाब से होती है.
  • पंचमी की वैरायटी की पैदावार 2800 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के हिसाब से होती है.
  • पूर्णमनी की वैरायटी की पैदावार 2300 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के हिसाब से होती है.

काली मिर्च की खेती के लिए कैसी हो उर्वरक और खाद?

  • काली मिर्च की अच्छी उपज के लिए अप्रैल से मई के महीने में करीब 10 किलो सड़ा हुआ गोबर हर पौधे में डालना चाहिए.
  • अप्रैल से मई के महीने में बुझा हुआ चुनाव 500 ग्राम हर पोधे जे हिसाब से लगाया जाना चाहिए.
  • अगस्त से सितंबर के महीने 500 ग्राम अमोनिया सल्फेट, एक किलो सुपर फास्फेट, 100 ग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश हर पौधे में देना चाहिए.
  • उर्वरकों और खादों को 25 से 30 सेंटीमीटर की दूरी और 12 से 15 सेंटीमीटर की गहराई पर डालना अच्छा होता है. साथ ही इसे मिट्टी में भी अच्छे से मिला देना चाहिए.


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कैसे करें काली मिर्च की तोड़ाई?

काली मिर्च के पौधों की तुड़ाई का समय रोपाई के लगभग 6 से 7 महीने में हो जाता है. काली मिर्च की फलियां 90 फीसद तक पक जाने पर उसके स्पाइक काट सकते हैं. हालांकि आमतौर पर काली मिर्च की कटाई नवंबर के महीने से शुरू होती है, जोकि मार्च के महीने तक चलती है.

जान लीजिये काली मिर्च की उपज के बारे में भी

काली मिर्च का एक पौधा एक साल में लगभग 4 से 6 किलो तक काली मिर्च की उपज दे सकता है. जिसके हिसाब से 40 से 60 क्विंटल प्रति हेक्टेयर के हसाब से इसकी पैदावार मिल सकती है.

जानिए काली मिर्च की खेती के फायदे

  • काली मिर्च का इस्तेमाल मसालों में किया जाता है.
  • सब्जियों का टेस्ट बढ़ाने के लिए भी काली मिर्च का इस्तेमाल किया जाता है.
  • काली मिर्च का इस्तेमाल औषधि के रूप में भी किया जाता है.
  • काली मिर्च के साम अन्य मसालों से कहीं ज्यादा हैं.
  • चाइनीज डिशेज में काली मिर्च का इस्तेमाल सबसे ज्यादा किया जाता है.
  • काली मिर्च की फसल सदाबहार है. जो जमकर फलती और फूलती है.
  • काली मिर्च की एक बार की खेती से सालों साल तक बंपर कमाई की जा सकती है.
अगर आप भी कलि मिर्च की खेती करके बंपर कमाई करना चाहते हैं, तो आपको इसके लिए ज्यादा मेहनत करने की जरूरत नहीं होगी. मार्केट में इसकी डिमांड काफी ज्यादा है. इसकी कमीत करीब 4 सौ रुपये प्रति किलो है. ऐसे में आप महीने में आराम से 40 से 50 हजार रुपये तक कमा सकते हैं.